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पूजनीय श्री राजमल जी सोगानी का जन्म दिनांक 26 फरवरी 1936 को धार्मिक परिवार श्री लक्ष्मी चंद जी सोगानी के घर आंगन में हुआ !
श्री राजमल जी सोगानी 5 भ्राता थे जिनमें इनका चौथा स्थान था!
आपका विवाह श्रीमती चांद देवी जैन (पुत्री श्री छाजूलाल जी - मूली देवी जैन गोधा डीडवाना ) से संपन्न हुआ!
पूजनीय श्री राजमल जी सोगानी एम ए राजनीति विज्ञान उच्च शिक्षित व्यक्तित्व के धनी थे!
18 वर्ष की अल्पायु में प्राथमिक विद्यालय मोरन में आप राजकीय शिक्षक के रूप में राजकीय सेवा में नियुक्त हुए !
दिनांक 28 फरवरी 1994 को राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बोली से व्याख्याता स्कूल शिक्षा से सेवानिवृत्त हुए !
आपने सन 1967 से 1971 तक एस डी आई पंचायत समिति बोली के पद पर कार्य किया एवं
1975 मै जिला स्काउट सचिव पद पर कार्य किया!
आपका व्यक्तित्व बहुत ही उत्कृष्ट रहा है सभी तरह के धार्मिक सामाजिक कार्य में विशेष रूचि रखते थे!
इसी के अनुरूप आपका अपनी धर्मपत्नी श्रीमती चांद देवी जी की पावन स्मृति में रूलर डेवलपमेंट एवं सोशल वेलफेयर सोसाइटी बोली की स्थापना सामाजिक उत्थान एवं विकास के लिए किया जाना एक बेहद सराहनीय कदम था !
इसी संदर्भ में वर्ष 2012 में बालिका शिक्षा को बढ़ाने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में सोगानी महिला महाविद्यालय की स्थापना आपके कर कमलों द्वारा की गई जिसमें वर्तमान में 200 से अधिक बालिकाएं अध्ययनरत है!
धार्मिक कार्यक्रमों में भी आप बढ़-चढ़कर दान देने में सदैव अग्रणी रहे हैं!
इसी के फलस्वरूप वर्ष 2019 में रवासा में आपने मूलनायक 1008 मुनि सुब्रत नाथभगवान के जैन मंदिर का निर्माण कराया !
जिसमें सभी स्वजनों को इंद्र आदि पात्र बनवाकर भव्य पंचकल्याण करवाया!
पूजनीय श्री राजमल जी सोगानी अपने पीछे पुत्र -पुत्र वधू, बेटी - दामाद ,पौत्र पौत्रि नाती पोते पौत्रि दामाद सहित भरा पूरा संपन्न धार्मिक परिवार छोड़कर गए !
आपके जीवन काल से आपने सभी को जीवन जीने की कला ही नहीं सिखाई अपितु जीवन को सफल कैसे बनाया जाए यह भी सिखाया है!
ओम शांति ओम शांति ओम शांति
मनोज-शर्मीला (पुत्र - पुत्रवधू), संजीव-प्रेमलता (पुत्र - पुत्रवधू), राजीव-प्रीति (पुत्र - पुत्रवधू), गौरव-शुभांगी (पौत्र -पौत्रवध), गौरव-शुभांगी (पौत्र -पौत्रवध), गौरव-शुभांगी (पौत्र -पौत्रवध), गौरव-शुभांगी (पौत्र -पौत्रवध), गौरव-शुभांगी (पौत्र -पौत्रवध), गौरव-शुभांगी (पौत्र -पौत्रवध), काश्वी ( परपौत्री ), रेणु - श्रेयांस (हिण्डौन सिटी) (पुत्री - दामाद), प्रमिला - प्रभाकर (लालसोट) (पुत्री - दामाद), नेहा - अभिषेक (गंज खेडली) (पौत्री - दामाद), महावीर प्रसाद जी राजेश कुमार जी जैन (डिडवाना वाले) ( ससुराल पक्ष )
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होता था,जिससे अलग ही आत्मीयता की अनुभूति होती थी। पोते पोतियों में दीदी के बाद उम्र में बड़ा होने के कारण अम्मा(दादीजी) और बाऊजी का प्यार, स्नेह, आशीर्वाद मुझे अधिक मिला ,इसके लिए मैं अपने आपको बहुत सौभाग्यशाली मानता हूं। बड़ो की क्षत्रछाया रहती है तो छोटे कोई भी गलती कर दे जिससे कोई भी समस्या उत्पन्न हो जाए , तो विश्वास रहता है कि हमारे पास समस्या के हल के लिए घर में कोई बड़े मौजूद है। सबसे अधिक हमारा इंतजार करने वाले, हमें याद करने वाले, हमारे लिए दिन में कई बार पूछने वाले बाऊजी,मेरी हर ज़िद्द पूरी करने वाले चाहे वो पहली साइकिल की हों या पहली स्कूटी की। सब दिलवाने वाले बाऊजी के हॉल में घुसते ही दीवान पर उनको ना पाकर गुस्सा आता हैं कि कोरोना नही आया होता तो आज बाऊजी हमारे साथ होते। जीवन में उत्पन्न हुए इस शून्यता(रिक्तता) को अब कभी नहीं भरा जा सकता है। फिर भी यह बात मानने को मन बिल्कुल तैयार नहीं है कि कार्य को लगनता से करने वाले , हमेशा खुश रहने वाले बाऊजी नहीं रहे है। उनके विचार हम सबके लिए प्रेरणादायक है। ऐसा लग रहा है कि बाऊजी कुछ दिनों के लिए कहीं गए है। बस वापिस आते ही सबको आवाज देंगे और सब पहले की तरह हो जाएगा। परंतु हमे पता है कि ऐसा कुछ भी नही होगा पर इस मन को समझाना बहुत ही कठिन हो रहा हैं। अब से कोई इतना बेसब्री से हमारा इंतजार नहीं करेगा। बार बार छोटी छोटी बातों पर चिंता जताने वाले , ख्याल रखने वाले बाऊजी कभी नहीं आयेंगे। अब सिवाय याद के हमारे पास कुछ शेष नहीं हैं। बाऊजी की परपोत्री काश्वी जो अभी बहुत छोटी है,मीठी गोलियां,टॉफी खाने के लिए हॉल में बाऊजी को ढूंढती हैं। पूछती हैं कि बड़े दादू कहा हैं, उसे तो इतना बताया है कि गॉड के पास गए हैं। उसे तो इतनी भी समझ नही है कि गॉड के पास जाना क्या होता हैं। ८५ वर्ष की उम्र में भी उनके चेहरे का तेज व मुस्कान उनके आधे उम्र के नौजवान से भी अधिक था। उनके पास पलंग पर उनसे लिपटकर लेटना व उनसे बाते करना अत्यधिक अच्छा लगता था,अब कहां से आयेंगे वो दिन। बाऊजी दिन में आवाज देकर घर के सभी सदस्यों को जरूर बुलाते थे। उनका मकसद सिर्फ यही जानना होता था कि किसी को किसी प्रकार की कोई तकलीफ तो नहीं हैं। लेकिन अब से हमे बाऊजी आवाज नहीं देंगे। बाऊजी के बारे में लिखने,बताने के लिए कई बाते है,जिसके लिए पुस्तक भी कम पड़ सकती ह
बाऊजी की धर्मपरायणता के आगे सभी परिवारजन नतमस्तक है। जैन मंदिर का निर्माण व पंचकल्याणक बाऊजी के आशीर्वाद से संपन्न हुआ। समस्त परिवारजनों को भगवान के जन्म से लेकर मोक्ष तक के सफर का साक्षी बनने का सौभाग्य बाऊजी के आशीर्वाद से प्राप्त हुआ। अम्मा(दादीजी)के नाम पर संचालित "श्रीमती चांददेवी रूरल डेवलपमेंट एंड वेलफेयर सोसायटी" समिति के माध्यम से अनेक मेडिकल कैंप व अनेक सामाजिक कार्य मानवीय सेवा में बाऊजी के आशीर्वाद से किए गए। जिनेन्द्र भगवान से यही प्रार्थना है कि बाऊजी जहां भी हैं,उन्हें मोक्ष प्रदान करे व अपने चरणों में स्थान देवें। शत शत नमन। ओम शांति🙏!!!
अत्यंत दुःख की अनुभूति होती है जब कोई सबसे करीबी प्रेरणा स्त्रोत आंखों से यकायक ओझल हो जाते है और हम चाहकर भी उन्हें नही रोक पाते हैं। बाऊजी आपके साथ बिताया हुआ हर क्षण मुझे एक नई ऊर्जा प्रदान करता है। आपके जीवन के अनुभवों, किस्सो से जो गुण,जीवन जीने की कला मैं सीख रहा था, वो शायद इस संसार में कोई भी मुझे नही सीखा सकता। इस क्षति की पूर्ति करना मेरे लिए संभव नहीं होगा। विकट परिस्थितियों का समाधान सहज,सरल ढंग से करना आपको बखूबी आता था,आपके इस कौशल का मैं सदैव कायल रहूंगा। बाऊजी के द्वारा परिवार को संगठित रखने में किए गए योगदान को भुलाए नहीं भुलाया जा सकता। सरकारी सेवा में रहते हुए अनेक अवसरों पर आपको बाहर जाना होता था, उन माहोल में जैन धर्म के कठोर नियमों का पालन करना एक साधारण मनुष्य के लिए संभव ही नहीं होता है किंतु आपकी चाह, दृढ़निश्चय एवं स्वभाव के कारण परिस्थितियां स्वतः ही आपके अनुकूल हो जाया करती थी। निस्वार्थ भाव से समाज सेवा, दान, धर्म के प्रचार एवं उत्थान के लिए दी गई आपकी प्रेरणा तथा योगदान सर्वविदित हैं। उसूलों के पक्के, धर्मपरायण, खुशमिज़ाज,उच्च व्यक्तित्व के धनी बाऊजी के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए आपके पोते-पोतियां सदा प्रयासरत रहेंगे। अपना आशीर्वाद हम पर हमेशा बनाए रखे। शत शत नमन, दिवंगत पुण्यात्मा को जिनेन्द्र श्री अपने चरणों का सायुज्य प्रदान करे।🙏ओम शांति 🙏
आदरणीय ब्याईजी साहब श्रीयुत राजमल जी के देह विसर्जन के समाचारों से सबका ह्रदय व्यथित हो गया।बड़ों की छत्रछाया हमें समय समय पर संबल प्रदान करतीं रहती हैं। परंतु काल चक्र के आगे सभी विवश है । इस शोक की घड़ी में हम यही भावना भाते है की दिवंगत आत्मा को सुगति प्राप्त हो ओर वे पुनः मानव जन्म धारण करके मुनि बन शाश्वत शिवसुख प्राप्त करे तथा शोकाकुल जनो को विरह वेदना सहन करने की शक्ति व सामर्थ्य मिले । शोक मे सहभागी जन: प्रकाशचंद, कैलाशचंद ,तेजकरण, ज्ञानचंद पदमचंद ,महावीरप्रसाद, नितिन, मनीष ,सुभाष एवं समस्त गंगवाल परिवार,चोरू ,तहसील फागी जयपुर, राजस्थान प्रेषित श्रीयुतमनोजकुमारजी,संजीवकुमारजी,राजीव कुमारजी,गौरवकुमारजीसोगानी,बोंली,
आदरणीय फूफा जी को हम सदा याद रखेंगे यह हमारे जीवन में हमेशा प्रेरणा के स्रोत रहे इनके जाने से हमारे परिवार व समाज में अपूरणीय क्षति हुई है आपकी कमी हमेशा सदैव रहेगी, जिनेंद्र प्रभु आपकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें ! और परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें! मनोज कुमार जैन, कमलेश जैन,अक्षय राधिका जैन|
Aapke Bina Jeevan adhoora adhoora lag raha ha, aapki chatrchaya Mera sambal thee, apka yah pariwar sadaiv sanghdith rahe, ekjut rahe, ashirwad dijiye, ham sabhi aapke dharmik vicharon ko atmsaat karte rahenge, vishwas dilate ha, shat Shat naman bauji ke Charno me aapka putra manoj
MANOJ KUMAR JAIN
(SON OF Shri RAJMAL JAIN SOGANI)
9950256861
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Gaurav Jain (Grand Son)
बाऊजी... बाऊजी मतलब मेरे दादाजी,जिन्होंने परिवार को अंतिम सांस तक एकजुट रखा। परिवारजनों में कितना ही मनमुटाव हों, अल्प समयावधि में ही उसे दूर कर देने की कला दादाजी से अधिक भला कौन जान सकता था। सांसारिक जीवन को केसे जिया जाए,यह उनके स्वयं के जीवन के किस्सों को सुनने मात्र से ही कोई भी व्यक्ति आसानी से उनसे सीख सकता था। किसी परिवारजन के चले जाने के बाद सदैव ही आसानी से कह दिया जाता है कि कालचक्र के आगे सभी विवश हैं,परंतु परिवारजन को खो देने का अहसास भी रूह को कंपा देने वाला होता हैं। परिवार के सबसे बड़े ,सबसे अधिक प्रिय बाऊजी को एकाएक हम सब को छोड़कर असामयिक चले जाने से जो अपूर्णीय क्षति पहुंची हैं, उसे भरपाना कभी संभव नहीं हों पाएगा। उच्च माध्यमिक शिक्षा २००६ में पूर्ण करने के बाद मेने बोंली छोड़ दिया था,तब से आजतक १५ वर्षो की अवधि में सिर्फ त्योहारों/अवकाशों में ही बोंली आना होता था।धीरे धीरे हम सभी सात भाई बहनों (दादाजी के पोते-पोतियों)ने उच्च शिक्षा के लिए घर छोड़ दिया था।हमारे आने का सबसे अधिक इंतजार बाऊजी को ही रहता था। बाऊजी की इच्छा तो हमेशा यही रहती थी कि कोई भी परिवार का सदस्य कहीं ना जाए,हमेशा उनके पास ही रहे। जब भी हमारे जाने का दिन आता तो बाऊजी का एक ही सवाल सबसे हमेशा यही रहता था की वापस कब आएगा। इस बार भी होली के बाद उनका यही सवाल था। बाऊजी बोले कि अभी तो जा,पर अगली बार जल्दी आ जाना। मुझे अच्छे से याद हैं कि तब मैंने कहा था कि जल्दी ही आऊंगा। यह एक महीने पुरानी बात हैं,परंतु इस तरह से मुझे आना होगा, यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। कोविड के कारण ना तो हॉस्पिटल में बाऊजी से मिल सका और ना ही बाऊजी के अंतिम दर्शन हों सके। इसका दुख जिंदगी भर हमेशा रहेगा। जब भी बौंली आते थे तो सबसे पहले घर में प्रवेश करते ही बाऊजी के पास ही जाते थे । जितने दिन भी बौंली में रुकते उनसे उनके जीवन के किस्से सुनते थे, चाहें वो अध्यापकों के साथ न्यायप्राप्ति के लिए जेल जाने का हों अथवा नौकरी में कितनी ही बार उतार चढ़ाव के किस्से हों, दिन में खाना(जैन धर्म के नियम) प्राप्त हों इसके लिए उनके द्वारा किए गए प्रयास के किस्से, पहाड़ चढ़कर व पैदल स्कूल विद्यार्थियों को पढ़ाने जाना हों आदि किस्से। कई बार तो बाऊजी एक ही किस्सा बार बार सुना देते थे, परंतु उनमें भी वहीं बताने का भाव हो